आज अपने ननिहाल युवराजपुर में नाना संग ::--
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आज बहुत दिनों के बाद अपने ननिहाल गए । नानी के इस दुनिया से विदा होने के बाद आज पहली बार हमारा मन ननिहाल जाने का हुआ । हमारी नानी को गुजरे पाँच साल से अधिक हो गए । हमारे बचपन का अधिकांश समय ननिहाल में ही बीता है । इसलिए हमारे संस्कार पर हमारे ननिहाल का अधिक प्रभाव पड़ा । त्याग और परिश्रम भरा जीवन हम अपने नाना से ही सीखे । हमारे नाना रिटायर्ड फौजी (कैप्टन) इस वक्त 90 साल से ऊपर हैं तब भी वह अपने लिए किसी का सहयोग नहीं लेते । हम अपने नाना में एक आदर्श पिता को देखे और अपने पिता में भी इनको ही खोजते रहे । हमारे तीन मामा हैं । बड़े मामा श्री अविनाश दुबे में भी सेवा भाव कूटकूटकर भरा है । अपने पराये में कोई भेद नहीं । बड़े मामा जितना प्रेम और सेवा अपने माता पिता की करते थे उतना ही अपने बड़े पिता एवं बड़ी मां की भी करते इस वजह से हम कन्फ्यूजन में ही रहते कि इनके असली माता-पिता कौन हैं । सीमित संसाधनों में भी बड़े मामा वेलमेन्टेन ढंग से अधिकारियों की भाँति रहते हैं और किसी भी रिश्ते और संबंध को अपने बल पर निभाते हैं । मझले राकेश मामा भी कोई दुखी-पीड़ित दिखा नहीं कि अपने आप को समर्पित कर देते हैं । किसी की भलाई के लिए अपना जीवन भी संकट में डाल देते हैं । किसी के भी प्रति लगाव दिखाते नहीं परन्तु जरूरत पर सबसे पहले खड़े हो जाते हैं । छोटे मामा राहुल भी संघर्ष की मूर्ति । इनका जज बनना किसी के लिए भी प्रकाश स्तंभ है ।
युवराजपुर के बहुत से लोग जिनको हम मामा कहते हैं । उनमें और अपने सगे मामा में भेद करना मुश्किल है । रामअवतार तिवारी मामा, अजय तिवारी मामा, भानु सिंह मामा, मनोज सिंह मामा, शिब्बू मामा कभी लगा ही नहीं कि ये सारे लोग अलग अलग घर के हैं ।
गंगा के किनारे निवास करने के कारण वहाँ के लोगों में आध्यात्मिकता कूटकूट कर भरा है । भजन कीर्तन संध्या वहाँ खूब होता है । कला वहाँ के खून में है । चाहे वह रंगमंच हो जिसके मिसाल के रूप में हमारे मित्र योगेश विक्रांत और इनके बड़े भाई शांति भूषण को कौन नहीं जानता और संगीत के मामले में लवतिवारी-कुशतिवारी, श्री अजय तिवारी, शिब्बू मामा कौन नहीं जानता ।
महुआ चैनल के मालिक पी के तिवारी भी इसी गाँव के हैं ।श्री अरुण प्रजापति जी आज अपने बल पर पूना में एक बड़ी कंपनी के मालिक हैं ।
शहीद विश्वंभर सिंह की वीरता गाँव के लिए एक मिसाल है ।
कुल मिला कर हम आज जो कुछ भी करते दिख रहे हैं उन सब के पीछे युवराजपुर से बचपन में मिला संस्कार है ।
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आज बहुत दिनों के बाद अपने ननिहाल गए । नानी के इस दुनिया से विदा होने के बाद आज पहली बार हमारा मन ननिहाल जाने का हुआ । हमारी नानी को गुजरे पाँच साल से अधिक हो गए । हमारे बचपन का अधिकांश समय ननिहाल में ही बीता है । इसलिए हमारे संस्कार पर हमारे ननिहाल का अधिक प्रभाव पड़ा । त्याग और परिश्रम भरा जीवन हम अपने नाना से ही सीखे । हमारे नाना रिटायर्ड फौजी (कैप्टन) इस वक्त 90 साल से ऊपर हैं तब भी वह अपने लिए किसी का सहयोग नहीं लेते । हम अपने नाना में एक आदर्श पिता को देखे और अपने पिता में भी इनको ही खोजते रहे । हमारे तीन मामा हैं । बड़े मामा श्री अविनाश दुबे में भी सेवा भाव कूटकूटकर भरा है । अपने पराये में कोई भेद नहीं । बड़े मामा जितना प्रेम और सेवा अपने माता पिता की करते थे उतना ही अपने बड़े पिता एवं बड़ी मां की भी करते इस वजह से हम कन्फ्यूजन में ही रहते कि इनके असली माता-पिता कौन हैं । सीमित संसाधनों में भी बड़े मामा वेलमेन्टेन ढंग से अधिकारियों की भाँति रहते हैं और किसी भी रिश्ते और संबंध को अपने बल पर निभाते हैं । मझले राकेश मामा भी कोई दुखी-पीड़ित दिखा नहीं कि अपने आप को समर्पित कर देते हैं । किसी की भलाई के लिए अपना जीवन भी संकट में डाल देते हैं । किसी के भी प्रति लगाव दिखाते नहीं परन्तु जरूरत पर सबसे पहले खड़े हो जाते हैं । छोटे मामा राहुल भी संघर्ष की मूर्ति । इनका जज बनना किसी के लिए भी प्रकाश स्तंभ है ।
युवराजपुर के बहुत से लोग जिनको हम मामा कहते हैं । उनमें और अपने सगे मामा में भेद करना मुश्किल है । रामअवतार तिवारी मामा, अजय तिवारी मामा, भानु सिंह मामा, मनोज सिंह मामा, शिब्बू मामा कभी लगा ही नहीं कि ये सारे लोग अलग अलग घर के हैं ।
गंगा के किनारे निवास करने के कारण वहाँ के लोगों में आध्यात्मिकता कूटकूट कर भरा है । भजन कीर्तन संध्या वहाँ खूब होता है । कला वहाँ के खून में है । चाहे वह रंगमंच हो जिसके मिसाल के रूप में हमारे मित्र योगेश विक्रांत और इनके बड़े भाई शांति भूषण को कौन नहीं जानता और संगीत के मामले में लवतिवारी-कुशतिवारी, श्री अजय तिवारी, शिब्बू मामा कौन नहीं जानता ।
महुआ चैनल के मालिक पी के तिवारी भी इसी गाँव के हैं ।श्री अरुण प्रजापति जी आज अपने बल पर पूना में एक बड़ी कंपनी के मालिक हैं ।
शहीद विश्वंभर सिंह की वीरता गाँव के लिए एक मिसाल है ।
कुल मिला कर हम आज जो कुछ भी करते दिख रहे हैं उन सब के पीछे युवराजपुर से बचपन में मिला संस्कार है ।
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